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( ८६ ) अडकधान आंबा फणस, दाडिम फल जंभीर। लखमण आणइ अति भला, वन सुरभीना खीर ॥४॥ खाता पीतां विलसतां, केक दिन गया जेथि। तेहवई साधु वि आविया, पुण्य योग करी तेथि ॥५॥
ढाल १
॥राग केदारो गोडी ॥ चाल-यावो जुहारो रे अमारउ पास, मननी पूरइ आस । साध वे आयोरे अंबरचारि, पहुचाइ भव पार । तप कर दीपई तेहनी देह, निरुपम गुण मणि गेह ।। १ । सा०। वंदना कीधीरे लखमण राम, वे कर जोडी ताम । आनंद पांम्योरे दरसण देखि, चंद चकोर विशेषि ।। २। सा०। सीता वांद्या रे मुनिवर वेइ, त्रिहि प्रदक्षिणा दे।। सीता वोली रे द्यो मुझ लाभ, वइसउ तउ सूझतो डाम ॥३। सा०। सीता थइ रे रोमंच सरीर, सखर विहरावी खीर। नारंग केला रे फणस खजूर, फासू दिया रे भरपूर ॥ ४ । सा० सानिधि कीधी रे समकित दृष्टि, थइ वसुधारा वृष्टि । दुंदुभी वागी रे दिव्य अकास, अहो दान सवल उलास ।। ५। सा०। सीता कीधो रे सफल जनम्म, त्रोड्या अशुभ करम्म । दुरगंधउ हुतोरे पंखी एक, थयो रिषी देखि विवेक ॥ ६ । सा०। आवी वांद्या रे साधना पाय, तुरत सुगंध ते थाय । साध प्रभावइ रे रतन समान, देह तणो थयो वान ॥७१ सा०।।