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( ८३ ) मुझ नइ काढी बाहिरी रे, माता विण अपराध । सरण आवी तुम्ह तणईरे, घउ दीक्षा मुझ साध ॥ ४६ | पू०॥ नव जोवन दीठी' भलो रे, कुंक् वरणी देह। चन्द्रवदनि मृगलोयणी रे, अपछर जाणो एह ॥ ५० पू० ।। ते कन्या देखी करी रे, तापस पणि तिण वार । चूकठ अणुधर चित्तमई रे, जाग्यउ मदन विकार ।। ५१ । पू० ॥ कहइ अणद्धर सुणि सुन्दरी रे, मुझनइ सरणो तुज्म । कामअगनि करि वलि रही रे, टाढी करि तनु मुज्म ।। ५२ | पू० ।। आवि आलिंगन दे मॅनइ रे, मानि वचन क्हइ एम । आलिंगन देवा भणी रे, वांह पसारी प्रेम ।। ५३ । पू० ॥ तितरइंतिण कन्या कह्यो रे, अहो अकज्ज अकज्ज । मुझ नइ को अजी नाभड्यो रे, हुं तो कन्या सलज्ज || ५४ । पू०॥ जइ संग वांछइ माहरो रे, तउ तापसध्रम छोड़ि। मुनइ मा पासि मांगीलई रे, मागता का नहि खोडि ॥५५॥ पू० ।। अमुकइ घरि छइ माहरी रे, माता चालि तुं तेथि। कन्या पूठई चालियो रे, ते गई गणिका जेथि ।। ५६ । पू० ॥ गणिकानई पाये पडी रे, वोनति करई वार-वार । ए पुत्री द्य मुझ भणी रे, मानिसि तुझ उपगार ।। ५७ । पू० ॥ छांनउ रह्यो राजा सुणइ रे, तापस वचन सराग। पाछी वाहे बांधियो रे, फिट निरलज निरभाग ।। ५८। पु०॥ देसथी बाहिर काढियो रे, थयो तापसथी विरत्त । मयणवेगानई इम कहिइ रे, तू कहिती ते तत्त ॥५६ । पू०॥ १ जोरइ चढी २ मा