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एक सकति जिमण करई, वीजी डायई हाथि । त्रीजी चउथी काख मई, पाचमी दातां साथि ॥ १६॥ लखमण सकति सह ग्रही, लागो न को प्रहार । कुसम वृष्टि देवे केरी, प्रगट्य ट जय-जय कार ।। १७ ।। लखमण कहइ एक माहरट, सहि तुं सकति प्रहार । राजा लागो कांपिवा, हूउ ते हाहाकार || १८ ।। जितपद्मा कहइ छोडिदे, खमि अपराध कृपाल। हिव हुँ तो थई ताहरी, भगत थयो भूपाल ।। १६ ।। कहइ राजा हिव परणि तुं, मुझ पुत्री गुण गेह । कहइ लखमण छइ माहरई, भाई जाणइ तेह ।। २० ।। सत्रुदमन तिहां जाइनई, प्रणमी रामना पाय। तेडी आव्यउ नगर मइ, रामचन्दनइ राय ॥ २१ ॥ जितपद्मा परणी तिहां, लखमण लील विलास । केइक दिवस तिहा रही, वलि चाल्या वनवास ।। २२ ।।
सर्वगाथा॥ १३५ ॥
ढाल
॥राग गउड़ी॥
जंबुद्वीप मझार म० ए सुवाहु संधिनी ढाल नगर वंसस्थल नाम, पहुता पाधरा, राम सीता लखमण सहूए, तिण अवसरि तिहाँलोक, दीठा नासता वालवृद्ध तरुणा बहूए ।॥ १॥ रामइ पूछया लोक, केहनइ भयकरी, नासइ भाजइ वीहताए, राजा राणी मंत्रि, धसमसता थका, आतमनई हित ईहताए ॥२॥