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। ( ७५ ) तप संयम करइ आकरा, उद्यत करई विहार। पुत्र विजयरथ ते थयउ, भरत नउ अगन्याकार ॥५॥ लखमण राम विजयपुरई, रहि केतला एक दोह। बनमाला तिहा मुकि नई, आघा चाल्या सीह ।।६।। खमंजलि नगरी गया, बाहिर रह्या उद्यान । लखमण पूछी राम नई, माहि गयउ सुणइ कानि ॥७॥ सत्रुदमन राजा कहई, जे मुझ सकति प्रकार । सुरवीर सहइ तेहनई, पुत्री अति सार ॥८॥ लखमण कोतुक देखिवा, गयउ राजा नइ पासि । आदर मान घणउ दीयउ, वइठउ मन उल्हास ॥६॥ रूप अधिक देखी करी, राजा पूछ्यो एम । किम आव्या तुम्हें कवन छउ, कहो वात धरि प्रेम ।। १० ।। भरत तणउ हूं दूत छु, आयो काम विशेषि । पांच सकति तु मुकि हुँ, सहिसि तमासो देखि ।। ११ ।। जितपदमा राजा सुता, देखी लखमण रूप । सूरपणो काने सुणी, अपनो राग अनूप ॥१२॥ लखमणनई छानो कहई, राजकुंयरि कर जोड़ि। महापुरुप तुं मत मरइ, जीवि वरसनी कोडि ।। १३ ॥ कहइ लखमण तुं वीहि मा, ऊभी देखि तमास । कहइ राजा नई कां अजी, ढोल करउ नहि हास ॥ १४ ॥ इम कहइ राजा उठीयो, रह्यो ठाण वय साप । मुंकी पाच अनुक्रमइ, सकति पराक्रम दाखि ।। १५ ।।