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सामंतक पाछां वल्या, पणि मन मई विषवाद | रामवियोग दुखी थया, सगलउ गयउ सवाद ||२|| तीर्थकर नई देहरs, आवी वइठा तेह।
दीउ साध सोहामणो, अटकल्यो तारक एह ||३|| किणही संयम आदस्यउ, किणही श्रावक धर्म | के पहुता साकेतपुरि, ते तर भारी कर्म्म ॥ ४ ॥ तिण विरतात सहु काउ, ते सुणि नई मा-बाप ॥ करिवा लागा रामन, सहु को दुक्ख विलाप ||५|| दशरथ दीक्षाआदरी, भूतसरण गुरु पासि । तपसंयम करs आकरा, त्रोडइ कर्म्म ना पास ||६||
ढाल सातवीं ढाल -- थांकी अवलू आवड़ जी,
[ सर्वगाथा १७३ ]
पुत्र वनवासइ नीसख्याजी, दशरथ लीधी दीख, म्हारा रामजी । सुमित्रा अपराजिताजी, दुख करई वेहुं सरीख ||१||
म्हारा रामजी तुम्ह विण सुनउ राज ।
मा सगली अलजर करई जी, आवड आजोध्या आज ||२||म्हा०||
पाख विहूणी पंखिणी जी, काय सिरजी करतार ||
पुत्र अनई पति बीहड्याजी, अम्हनई कुण आधार || म्हा||३||
नयणें नाठी नींदडीजी, अन्न न भावइ लगार | पाणी पणि नूतरह गलइजी, हीयड फाटणहार || म्हा०||४||