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द्वितीय खण्ड
॥ दूहा ॥ हिव वीजउ खड बोलस्यु, विहु वावइ बहुप्रम। सानिधि करिजे सरसती, [जोडु वेगउ जेम ॥१॥ सीताराम सभागिया, भोगवइ भोग सयोग । लीला ना ए लाडिला, घणुबखाणइ लोग ॥२॥ श्रावक नउ सूधउ घरम, पालइ दसरथराय । अट्ठाई महुछव करड, जिरणवर देहरे जाइ ॥३॥ जिण मज्जण करिवा भरणी, महुछव देखण काजि । तेडावी अतेउरी, सगली सगलइ सानि ॥४॥ मारणस मुक्या जू जुय, तेडण भणी तुरत्त । सहु प्रावी अतेउरी, भगवत करण भगत्ति ॥१५॥ राजानर मुक्यउ हुतउ, पणिन गयउ किण हेति। पटराणी प्रावी नही, झूरि मरइ रही तेथि ।।१६।।