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प्रांपरणइ काम नही छइ.कोई कहइ सह को विलखाणा। घर नी बइयरि सरिसइ वरिस्यइ फोकट चित्त लोभाणा ॥ लाख पायउ जउ जीवतां जास्या बहु जोती हुस्यबाट । रामचंद्र उठ्यउ अतुलीवल सीह सादुला घाट ॥१६॥
विद्याधर नर सहु देखता रामइ चान्य उ-चाप । टकारव कीधउ तारणी नइ प्रगट्यउ तेज प्रताप || धरणी धूजी पर्वत काप्या सेषनाग सलसलिया। गल गरजा रव कीघउ दिग्गज जलनिधि जल ऊछलिया ॥१७॥
अपछर बीहती जइ आलिंग्या आप अपणा भरतार । राखि राखि प्रीतम इम कहती अम्ह नइ आधार । आलान थंभ उथेढी नाख्या गज छूट मयमत्त । बंधन त्रोडि तुरंगम नाठा खलबल पडीय तुरन्त ॥१८॥
उपसांत थया खिण मइ उपद्रव वरत्या जय जय कार । देव दु दभि आकासइ वाजी पुष्पवृष्टि परकार । सीता परिण हरषित थइ पहुती राम समीप सलज्ज ।। वीजउ धनुप चडायउ लखमण विद्याधर अचरिज्ज
विद्याधर रंज्या गुण देखी सबल सगाई कीधी। रूपवत अट्ठारह कन्या रामचद नइ' दीधी ।। विद्याघर किन्नर सुर सहु को पहुता निज निज ठाम । पाणीग्रहण करायउ राम नइ सीधा वछित काम ॥२०॥
१. लक्ष्मणाय दत्ता