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नयनकमल अणियाला, विचि कोकी भमरा काला हो ॥सी०॥ सूयटा नी चाच सरेखी, नासिका अति त्रीखी निरखी हो ॥३॥सी०।।
नकवेसर तिहा लहकइ, गिरुया नी सगति गहकइ हो ।सी०॥ काने कु डल नी जोडी, जेह नउ मूल लाख नइ कोडी हो ॥४॥सी०॥ अधर प्रवाली राती, दत दाडिम कलिय कहाती हो।सी०॥ मुख पु निम नउ चदउ, तसु वचन अमीरस विदउ हो ॥शासी०॥ कंठ कदलवली त्रिवली, दक्षणावत सख ज्यु सवली हो ॥सी०॥ अति कोमल बे बांहां, रत्तोपल सम कर तांहां हो ॥६॥ सी०॥ घण थण कलस विसाला, ऊपरि हार कुसम नी माला हो ।सी०॥ कटि लक केसरि सरिखउ, भावइ कोइ पडित परिखउ हो ॥७॥ सी०॥ कटि तट मेखला पहिरी, जोवन भरि जायइ लहरी हो ॥सी०।। रोम रहित वे जघा हो, जाणे करि केलि ना थभा हो ॥६॥सी०॥ उन्नत पग नख राता, जाणे कनक कूरम बे माता हो ॥सी०॥ सीता तउ रूपइ सोहइ, निरखता सुर नर मोहइ हो ॥॥सी०॥ कवि कल्लोल नही छई, ए ग्नथे वात कही छई हो ॥सी०॥ जोवन वय मन वालइ, रूपवत हुई सील पालइ हो ॥१०॥सी०॥ ए वात नी अधिकाई, कुरूप नी केही वडाई हो ॥सी०॥ सील पालइ ते साचा, सीलवंत तणी फुरइ वाचा हो ॥११॥सी०॥ पांचमी ढाल ए भाखी, इहां (सीता) पदमचरित छइ साखी हो ॥सी समयसु दर इम वोलइ, सीता नइ कोइ न तोलइ हो ॥१२॥सी०॥
[ मर्नगाया।१०५]