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१ ढाल पहिली
राग सारंग', ढाल-साहेलो प्रांबउ मउरीयउ जंबूदीप जिहां आपे, उत्तम पुरुष नुठामो रे। भरतक्षेत्र तिहा अति भलउ, नगर राजगृह नामो रे। गौतम सामि समोसा , गिरुया श्रीगणधारो रे । सोधु संघाति परवऱ्या, श्रुतकेवली सुविचारो रे ।।२।। गौ० वादिवा श्रेणिक आवियउ, द्यइ गणधर उपदेशो रे।। वाणी अमृत श्राविणी, निश्चल सुणइ नरेशो रे ॥३।। गौ०॥ जीव नइ मारइ जारिणनइ,(१) कूड वोलइ बहु भगो रे (२) परधन चोरी पापियउ (३), परस्त्री करइ प्रसगो रे (४) ॥४॥गौ०।। राखइ परिग्रह रग सु (५), करइ वलि क्रोध विशेषो रे (६)। मान७माया लोभमनिधरइ, रात दिवस रागद्वेषो१० रे ११॥ शागौ०।। वेढि करइ १२ वलि आल धइ (१३) करइ निंदा दिन रातो रे (१४) । रति नइ१५अरति१६वेतउ रहइ, मायामृषा१७मिथ्यातो रे १८॥६॥गौ०॥ ए अढार पाप एहवा, जे करइ पापी जीवो रे। भवसमुद्र माहे ते भमई, दुःख देखइ करइ रीवो रे ।।७।। गौ०॥ वली विशेष कोई साध नइ, आपइ कूडउ आलो रे । सीता नी परि दुख सहइ, सबल पडइ जजालो रे ।।८। गौ० ॥
१ गउड़ी