________________
महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर विरचित ... सीताराम चौपाई
॥दूहा ॥ स्वस्ति श्री सुख सपदा, दायक अरिहत देव ।। कर जोडी तेहनइ करू , नमसकार नितमेव ॥१॥ निज गुरु चरणकमल नमु , त्रिण्ह तत्व दातार । ' कीडी थी कुजर कियउ, ए, मुझ नइ उपगार ॥२॥ समरूँ सरसति सामिणी, एक करूँ अरदास ॥ माता दीजै मुझ नइ, वारूं वचन विलास ॥३॥ संबपजून (१) कथा सरस, प्रत्येकबुद्ध (२) प्रबन्ध । नलदवदन्ति (३) मृगावती(४), चउपई च्यार सबध ॥४॥ आई तु प्रावी तिहाँ, समऱ्या दीधउ साद ।। सीताराम सबध परिण, सरसति करे प्रसाद ॥५॥ कलंक न दीजइ केहनइ, वली साध नइ विशेषि ॥ पापवचन सहु परिहरउ, दुःख सीता नउ देखि ।।६।। सील रतन पालउ सहू, जिमि पामउ जसवास ॥ सीता नी परि सुख लहउ, लाभउ लील-विलास ।।७।। मोताराम सबंध ना, नव खंड कहीसि निबध । सावधान थई साभलउ, सील विना सहु धध ॥८॥