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[ ६५ ] वासुदेव प्रगट हो रहे है। सिद्धार्थ ने कहा-चिन्ता की कोई बात नहीं । अपने गोत्र में कभी चक्ररत्न प्रभाव नहीं दिखाता । लक्ष्मण के पूछने पर नारद और सिद्धार्थ ने कहा कि ये दोनों महानुभाव राम के पुत्र हैं। राम ऐसा सुनकर तुरन्त अस्त्र त्याग कर पुत्रों से मिलने के लिए आगे वढ़े। इतने में ही लव कुश ने रथ से उतर कर पिता को नमस्कार किया। राम ने प्रसन्नता पूर्वक पुत्रो को आलिगन पूर्वक सीता के कुशल समाचार पूछे । लक्ष्मण के निकट आने पर कुमारो ने उन्हें प्रणाम किया। सर्वत्र मंगलमय वाजिन वजने लगे, वधाइयां बंटने लगी। सीता भी पिता पुत्रों का मिलाप सुन कर विमान द्वारा वापस चली गई। सब ने वनजंघ का बड़ा भारी आभार माना। सारे परिवार के साथ परिवृत्त लव कुश वडे समारोह के साथ अयोध्या मे प्रविष्ट हुए। सर्वत्र सीता और लव कुश की प्रशंसा होने लगी।
अयोध्या निवास के लिये सीता संकल्प एक दिन राम के समक्ष सुग्रीव, विभीपण ने निवेदन किया कि पति और पुत्रों की वियोगिनी सीता जो पुंडरीकनगरी में बैठी है, महान दुख होता होगा। राम ने कहा-मैं जानता हूँ और मेरा भी हृदय कम दुःखी नहीं है पर क्या करूँ मैने लोकापवाद के कारण ही प्राणवल्लभा सीता को छोड़ा तो अब किसी प्रकार उसका कलंक उतरे, ऐसा उपाय करो ! राम की आज्ञा से भामंडल, सुग्रीव और विभीषण सीता के पास गये और उसे अयोध्या चलने के लिए कहा। सीता ने गद्गद् वाणी में कहा- मुझ निरपराधिनी को छोड़ा, इस अपार दुःख से आज तक मेरा कलेजा जला रहा है। अब मुझे प्रियतम के साथ महलों मे