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[ ६१ ] धीर एवं संयमी राम की गम्भीर विकलता कृतान्तमुख सारथी ने सीता को वन मे छोड़ने और सीता द्वारा कहे हुए वाक्यों को राम के सन्मुख निवेदन किया। उसने कहा-सीता को नदी पार होने के पश्चात् जब मैंने अटवी में छोड़ा तो उसने रुदन और विलाप के द्वारा वन के मृगों तक को रुला दिया। उसने कहलाया है कि मैंने जान या अनजान में कोई अपराध किया हो तो क्षमा करना व मुझ जैसे विना परीक्षा किए हुए अटवी में छोड़ दिया वैसे आई त धर्म रूपी रत्न को मत छोड़ देना । सीता का सन्देश सुन कर राम मूच्छित होकर गिर पड़े और थोड़ी देर में सचेत होने पर सीता के गुणों को स्मरण कर नाना विलाप करने लगे। उनको नाना विलाप करते देख लक्ष्मण ने धैर्य वैधाया। राम ने कहा-उस भयंकर अटवी मे उसे हिंस्र पशुओं ने मार डाला होगा, किसी तरह उनसे बच भी गई तो वह मेरे विरह में जीवित नहीं बची होगी।-अतः उसके निमित्त पुण्य कार्य व देव-गुरु-वन्दन करके शोक त्यागो। राम सीता के गुणों को स्मरण करते हुए राजकाज मे लग गये।
लव-कुश जन्म और उनकी वीरता का कथा प्रसंग बजूजंघ राजा के यहाँ रहते हुए सीता ने गर्भकाल पूर्ण होने पर पुत्र युगल को जन्म दिया। राजा ने भानजों के जन्म का उत्सव किया और प्रचुर वधाईयां बांटी। दसूठन के दिन समस्त कुटुम्ब परिवार को भोजन कराके अनंगलवण और मदनाकुश यह कुमारों का नामकरण संस्कार किया। सिद्धारथ नामक क्षुल्लक जो ज्योतिष-निमित्तमें प्रवीण थे, तीर्थ यात्रा के निमित्त घूमते हुए सीता के यहाँ आये। सीता ने