________________
[ ३५ . अरनाथ स्वामी के २४, मल्लिनाथ के २० पाट, मनिसुन्नत स्वामी और नमिनाथ स्वामी के नीर्थ के भी करोड़ों मुनिराज यहां से निर्वाण पद प्राप्त हुए अतः इसका कोटिशिला नाम प्रसिद्ध हुआ। प्रथम वासुदेव इसे बायी भुजा से ऊँची उठाते है, दूसरे मस्तक तक, तीसरे कण्ठ तक, इस तरह छाती, हृदय, कटि, जांघ, जानु पर्यन्त आठवा व नवम वासुदेव चार अंगुल ऊँची उठाते है। लक्ष्मण ने सबके समक्ष वांयी भुजा से ऊँची उठा दी, देवों ने पुष्पवृष्टि की! कोटिशिला तीर्थ की वन्दना कर सम्मेतशिखर तीर्थ गये, वहाँ से विमान में बैठ कर सब लोग किष्किन्धा आ पहुंचे।
आक्रमण मन्त्रणा राम ने कहा-अव निश्चिन्त न बैठ कर लंका पर शीघ्र चढ़ाई कर देना ही ठीक है। सुग्रीव ने कहा--रावण विद्या वल से परिपूर्ण है अतः पहले युद्ध न छेड़ कर यदि उसके भाई विभीपण जो कि न्यायवान और परम श्रावक है-दूत भेज कर प्रार्थना की जाय, ऐसी मेरी राय है। रामचन्द्र ने कहा-ऐसा दूत कौन है जो यह कार्य कर सके ? सबका ध्यान पवन के पुत्र हनुमन्त की ओर गया और श्रीभूति दूत को भेज कर हनुमन्त को बुलाया। उसने जब सारी बातें कही तो हनुमन्त की स्त्री अनंगकुसुमा जो खरदूपण की पुत्री थी, पिता
और भाई की मृत्यु का दुःख करने लगी जिसे सबने धीरज बँधाया। दूमरी स्त्री कमला सुग्रीव की पुत्री थी जिसकी माता तारा और सुग्रीव को सुखी करने के कारण उसने दूत का बहुत आदर किया। हनुमान का दौत्य और शक्ति प्रदर्शन तथा सीता-सन्तुष्टि
हनुमन्त भी राम के गुणों से रंजित होकर तुरंत विमान द्वारा किष्किन्धा गया। राम लक्ष्मण से आदर पाकर हनुमन्त राम की