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________________ [ ३४ ] लंका की शक्ति और रावण-मृत्यु रहस्य विद्याधर रत्नजटी ने कहा-लवण समुद्र के बीच, राक्षसों के द्वीप में त्रिकूट पर्वत पर लंकानगरी वसी हुयी है। वहाँ राजा रावण-दशानन अपने विभीषण, कुम्भकरण भ्राता व इन्द्रजीत, मेघनाद पुत्रों सहित राज करता है। वह वडा भारी शक्तिशाली है, उसने नीग्रहों को अपना सेवक बना रखा है और विधि उसके यहां कोद्रव दलती है ! उस त्रैलोक्य कंटक रावण के समकक्ष कोई नहीं! राम-लक्ष्मण ने कहा-पर स्त्री हरण करने वाले की क्या प्रशंसा करते हो, हम उसे हनन कर व लंका को लूटकर सीता को लीला मात्र में ले आवंगे। उसे ऐसी सीख दगे कि भविष्य में कोई परस्त्री हरण करने का साहस नहीं करेगा! जंबुवंत ने कहा-ये आपसे प्रीति धारण करने वाली विद्याधर कन्या प्रस्तुत 'है, इसे स्वीकार करो और सीता को लाने की बात छोड़ो। अन्यथा महान कष्ट में पड़ोगे । लक्ष्मण ने कहा- उद्यम से सब कुछ सिद्ध होता है ! हम सीता को निश्चय प्राप्त कर लेंगे। सुग्रीव के मन्त्री जंबुवन्त ने कहा-एक बार रावण ने अनन्तवीर्य मुनि को पूछा था कि मुझे कौन मारेगा तो उन्होंने कहा था कि जो कोटिशिला को उठावेगा उसी से तुम्हें मरने का भय है ! यह सुन कर राम, लक्ष्मण और सुग्रीव सिन्धु देश गये। कोटिशिला प्रसंग तथा लक्ष्मण द्वारा शत्ति प्रदर्शन कोटिशिला एक योजन उत्सेधागुल ऊँची और इतनी ही पृथुल है, यहाँ भारत की अधिष्ठातृ देवी का निवास है। शान्तिनाथ स्वामी के चक्रायुध गणधर और उसके ३२ पाट, कुन्थुनाथ तीर्थ कर के २८,
SR No.010706
Book TitleSitaram Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1952
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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