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( ४२ ) इस ग्रन्थ के प्रकाशन में मुझे मेरे भ्रातृपुत्र श्री भंवरलाल नाहटा का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है, 'वरदा के यशस्वी सम्पादक श्री मनोहर शर्मा ने इसकी भूमिका लिखने की कृपा की है,इसलिये मैं उनका अभारी हूं। ग्रन्थ में कठिन शब्दों का कोष देने का विचार था, पर ग्रन्थ काफी बड़ा हो चुका है
और उसको तैयार करने में कुछ समय लगता जिससे ग्रन्थ पूकाशन में और भी विलम्ब होता, इसलिये वह नहीं दिया जा सका है।
विनीत :अगरचंद्र नाहटा