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'परमात्म प्रकाश की हिन्दी भापा टीका स० १७६२ म कवि ने बनाई है। इसकी ३५ पत्रों की प्रति अजमेर के दिगम्बर भट्टारक भण्डार में है। [५] वीरभक्तामर स्वोपज्ञ वृत्ति ___ प्रस्तुत ग्रन्थ मे वीर-भक्तामर मूल छपा है। इससे पहले भी यह संस्कृत भक्तामर का पादपूर्ति काव्य आगमोदय समिति प्रकाशित काव्य संग्रह प्रथम भागमें छप चुका है। पर इसकी स्वोपग्यवृत्ति अभी अप्रकाशित है जिसे भीनासर के यति सुमेरमलजी के संग्रह में हमने कई वर्ष पूर्व देखी थी।
कवि धर्मवद्धन की रचनाओं से मेरा परिचय वाल्यकाल से है। उनके रचित "जिनकुशलसूरि का सवैया” में जब ८-१० वर्ष का था तभी सुनने को मिला था फिर इनके रचित कई स्तवन और सझाय मेरे ज्येष्ट भ्राता स्वर्गीय अभयराजजी की स्मृति मे मेरे पिताजी के प्रकाशित 'अभयरत्नसार' में सन्-१९२७ मे प्रकाशित हुए तबसे कवि का परिचय और भी वढा और सं० १९८६ मे जब कविवर समयसुन्दर की रचनाओ की खोज करने के लिये बीकानेर के बड़े ज्ञानभण्डार आदि की हस्तलिखित प्रतिया देखनी प्रारम्भ की तो 'महिमाभक्ति भण्डार' में ६६ पत्रो की एक ऐसी प्रति मिली, जिसमें कवि की समस्त छोटी छोटी रचनाओं का संग्रह था। इसकी प्रति की मैने राजस्थानी रचनाओ की प्रेसकापी तो स्वयं उसी समय तैयार करली और सस्कृत स्तोत्रादि की प्रेस कापी