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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली जिहां चढता परिणाम अपूरव गुण लहै,
___ अट्ठम नाम अपूर्व करण तिण कहै । शुक्लध्यान नौ पहिलो पायो आदरै,
निर्मल मन परिणाम अडिग ध्याने धरै ।२४. हिव अनिवृति करण नवमो गुण जाणिय
जिहा भावथिर रूप निवृति न आणीय । क्रोध मान नै माया सजलणा हणे,
उदय नहीं जिहां वेद अवेद पणो तिणे ॥२५॥ तिहा रहे सूपम लोभ काइक शिव अभिलप, . ते मूखमसपराय दशम पंडित दखै । शातमोह इण नाम इग्यारम गुण कहै,
____ मोह प्रकृति जिणठाम सहु उपशम लहै ।२६। श्रेणि चढ्यौ जौ काल करै किणही परै,
तो थाये अहमिद्र अवरगति नादरै । च्यार वार समश्रेणि लहै ससार में,
एक भवै दोइ वार अधिक न हुवै किमै ।२७ चढि इग्यारम सीम शमी पहिलै पड़े,
मोह उदय उत्कृष्ट अर्ध पुद्गल र. । .... . खिपक श्रेणि इग्यारम गुणठाणी नहीं,
दशम थकी बारम्म चढे ध्याने रही ।२८१