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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह
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ढाल-२ सफल ससारनी जेह एकात नय पक्ष थापी रहै,।
प्रथम एकात मिथ्यामती ते कहै। ग्रंथ ऊथापि थापै कुमति आपणी,
कहै विपरीत मिथ्यामती ते भणी ॥५॥ शैव जिनदेव गुरु सहु नमै सारिखा,
तृतीय ते विनय मिथ्यामती पारिखा। सूत्र नवि सरदहै रहै विकलप धणे,
संशयी नाम मिथ्यात चौथो भणै ॥ ६ ॥ सममि नहिं काइ निज धध रातो रहें,
एह अज्ञान मिथ्यात पंचम कहै। , एह अनादि अनंत । अभव्य नै,
कहय अनादि थिति अंत सु भव्य नै ॥१॥ जेम नर खीर घृत खड जिमनै वमैं,
सरस रस पाइ वलि स्वाद केंहवौ गमे । 'चउथ पचम छठे ठाण चढि नै पड़े,
किणही कषाय वसि आइ पहिलै अडै ।।८।। रहै विचै एक समयादि पट आवली,
. सहिय सासादने थिति इसी साभली। हिव इहा मिश्र गुणठाण त्रीजो कहै,
जेह उत्कृष्ट अंतरमहूरत . लहै ॥६॥' ,