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। धर्मवर्द्धन ग्रन्थावला
चौदह गुणस्थानक स्तवन
___ ढाल-थभणपुर श्री, राहनी सुमति जिणंद सुमनि दातार, वंदु मन सुध वारो वार,
- आणी भाव अपार । चवदै गुणथानक सुविचार, कहिसु सूत्र अरथ मन धार,
पाव जिण भव पार ॥१॥ प्रथम मिथ्यात कयौ गुणठाणौ, बीजौ सासादन मन आणौ, __ -
तीजो मिश्र बखाणो। चौथो अविरति नाम कहाणौ, देशविरति पंचम परमाणौ,
छट्ठौ प्रमत पिछाणौ ।।२।। अप्रमत्त सत्तम सलहीजै, अठम अपूरव करणकहीजै,
अनिवृत्ति नाम नवम्म । - सूषम लौभ दशम सुविचार, उपशातमोह नाम इग्यार,
खीणमोह बारम्म ॥ ३ ॥ , तेरम सयोगी गुणधाम, चवदम थयौ अयोगी नाम,
वरणु प्रथम विचार - कुगुरु कुदेव कुधर्म वखाणे, ते लक्षण मिथ्या गुण ठाण,
. तेहना पंच प्रकार ॥ ४ ॥