SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , २६८ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पंचेन्द्रि अपज्जत असखगुणा ए जाण (४६) चोरिन्द्रि तेइन्द्रि (५१) वेइन्द्रि (५२) अपज विशेप वखाण । प्रत्येक वनस्पतिय(५३)निगोद(५४)पृथ्वी(५५) अप(५६)वाय(५७) चादर परजापत पाच असख गुणाय ॥१॥ हिवअपज्जत्ता बादर अनि अठावनेवोल (५८) एहवा हीज वनस्पति असंखगुणी इणतोल (५६) वलिय निगोद(६०)पुढवी(६१)अप(६२)वाय(६३) एच्यारे जाण । वादर अपजन्ता असंख्यात गुणा परिमाण ॥११॥ इहांथी सुक्ष्मअपज्जत अगनि असंख गुणेह (६४) भू (६५) जल(६६)पवन (६७) इसाज विशेप धरेह । . अड़सट्टिमो इहा सूक्ष्म पन्जत तेउ गिणेस (६८) पुढवी (६६) अप ने (७०) वायु (७१) पज्जता सुक्ष्म विशेप ।१२। ___ ढाल-बेकर जोडी ताम राहनी। बहुतरमे हिव वोल सूक्ष्म अपज्जत, जीव निगोदे जाणिवाए, (७२) । असंख्यात गुण एहएहथी पज्जत संख्यातेगुण आणवाए (७३)।१३। . अनतगुणा अधिकार इहाथी आगले भव्य अनंत गुणा सहीए(७४) । ए चिहुतरमो समकित नहीं लहै, मोक्ष कदे लहिस्ये नहीए ।१४।। समकित पतितने(७५)सिद्ध(७६)अनंतागुणा,एलेखवल्यौ अनुक्रमेए। * चादर रूप पज्जत वनस्पतितणा(७७) जीव अनंत गुणा भमैए।१५। -
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy