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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह . २६७ हिव सहस्रार (१४) श्रुक्र (१५) पंचम नेरया (१६)
लांतक (१७) चतुर्थीनर्क (१८) ब्रह्मदेवया (१६) तीय, पृथ्वीय (२०) माहेन्द्र (२१) असखगुणा,
सनतकुमार (२२) बीयनिरय अनुक्रम घणा (२३) ठाम चौवीसमी मनुष्य समूच्छिमा, (२४)
देवईशान असंख गुण निभ्रमा (२५) । ६।' देवी ईशानरी (२६) सुधर्मसुरजिके (२७)
तेहनी, त्रीय संख्यात गुणीय तिके (२८) । ६ । भवणवइदेव असंख्यात (२६) देवी संख्या बहु (३०)
प्रथमनारकि असखेय गुणीया सबहु (३१) बोल वतीसमें खेचर पचेन्द्रिया,
तिरिय असंख्यात गुणा(३२) सख्य एहनीत्रिया(३३)।७१
ढाल तिण अवसर कोइ मागच आयो पुरदर पास। थलचर तिरिय पुरप(३४) त्री(३५) जलचरिमिथुन (३६-३७) लहेस, व्यतर देवने (३८) देवीय (३६) ज्योतिपी युगम(४०।४१)कहेस ।
खचरतिरी(४२)थलचर(४३)जलचरय(४४)नपुसक जेह ।
अनुक्रमैं एह इग्यार संख्यात गुणा करि लेह ॥ ८ ॥ वलि परजापति चोरिन्दी संख्यात गुणेह (४५)
पजत सज्ञि पचेन्द्रि विशेपे अधिका तेह (४६) .. पज्जवइन्द्रि (४७) पजतेइन्द्रि विशेष (४८) विशेष
अडतासीस ए बोल कह्या अनुक्रम गिण देख)