________________
२५०
धर्मवद्धन ग्रन्थावली
गुरु गहुली (१०) ढाल-वैत्रणी आगे थी कहै । रा० सिणगार सार वणाइ सुन्दर, चुंनडी ओढी सुचंग। घर हाथ थाल विसाल ले, आवी अति उद्धरंग। सहु मिली सहिया गुण गावो गहुँली गीत ॥ १॥ सुगुरू बधावी सुरीति, पुन्य धरि बहु प्रीति ।। सहु० ॥२॥ फस्तुरि केशर कुकमा, करि रोल भरीय कचोल । मन रंग माडे माडणा, अधिक भाव इलोल ।। सहु ॥३॥ चौकुण चिहु दिशि च्यार चौकी, चौकोर फूलड़ी चंग। कलीए हसता कमल ज्यू', सौहे अति ही मुरंग ।। सहु० ।।४।। साथीयो सुन्दर विच सोहै, सोहै सगला मन्न । संसार इम सफलो करें, धन अम्मकादे धन्न ।। सहु० ॥५॥ . चोखा अंखडित लेइ चोखा. माहि मोती मेलि । सुहब बधाव सुगुरु नै, बधती मोहनवेलि ।। सहु० ॥al नमती करती निमछना, लुलि लुलि लागे पाय । सुख विजयहरप लहै सदा, धरमसी कहै धरि भाव सहु०॥७॥
(२१) सुगुरु व्याख्यानगीत
ढाल-धर्म जागरीया नी० सरस वखाण सुगुरु तणो, मन भवियण ना मोहै रे। सुणिवाने तरसे सहु, सकल गुण करि सोहै रे ।। सरस०॥ ए। राग सिधत तणे रसै, भेद भलीपर भाखै रे। मिसरी दूध मिल्या थका, चतुर भली पर चाखै रे ||सरसा।।