________________
' २४६
गुरु गीतादि संग्रह धन धन श्री जिनचंद पटोधर, टीपै चढ़तो दावी। , सकल कला जिनसुखसूरीसर, पग वद्या सुख पावौ गच्छा । वाणी सूत्र सिद्धान्त वखाणे, विधि सु वंदि वधावी। ए गुरू श्री 'धर्मशील' आचारी, सहु में सुजससुहावौ गच्छ॥३।।
(E) भास गीत गहुली
ढाल-मोरो मन मोह्यौ पूज वादण सौं भलो दिण उगौ आज आणंद सौं, गुरू वाद्या लाधो ज्ञान । सुणिस्या उपदेस सुहामणा, धरिस्या साचउ धर्म ध्यान भलो०१. नित करस्या समकित निरमलौ, निरमल जिम गगा नीर भलो० तजस्यां संगति निगुणा तणी, सुगणा सु करिस्यां सीर ।भलो०२। मिल आवी सहिया मलपती, सुन्दर करि शुभ सिणगार भलो० गुण गावौ श्री गुरूदेव ना, औ सफल करौ अवतार । भलो. भगवत गणधरै भाखिया, सहु सूत्र सुणावइ सार । भलो० जिन थी शुभ मारग जाणिय, एहवी जे करें उपगार । भलो०४ जयणा करियै जीवा तणी, जतने भरिये पग जोई। भलो० बड़का रौ वलि कीजै विनय, मन कपट न करिस्यौ कोई ॥५॥ खाटै जस अधिकउ खरतरा, जिण शासन शोभ सुजाण भलो० करणी सखरी पुन्य री करे, भला श्रावक कुल रा भाण भि०॥६ वरतै दिन दिन हि वधामणा, सहु सुजस करै संसार । भलो० . धर्म हेत उपाध्या धरमसी, श्री सघ सदा सुखकार । भ० ॥१॥