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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली धन्न धरती जठे पूज पगला धरै,
सहू इस साभरै देस सारै। इपि गच्छराज धन आज हुआ अम्हे,
धन्न वलि तरणि जग किरण धारै ॥२॥ वाणि वाखाण री जाण अमृत वदे,
प्रेम मन धारि परवीण पीवें । गोत्र गणधार गुणधार भेट्यो गुहिर,
दीपियौ भलौ रवि जगत दीवैं ॥३॥ रतन पटधार वडवार वरतो रिधू,
विधू धरि मेर ६ जाव वरतें। धरो चिर आउ गच्छराउ धर्मशील धर,
पुहवी किरणाल जा प्रगट परतें ॥४॥
जिन चंद सूरि दोहा वारू सरव विवेक, इतरौ जाणी आपथी। अम्ह ने दीजे एक, रितु परिमाणे रतन उत ।। १ ।।
(१) जिनसुखसूरिपद महोत्सव
ढाल-चरण करण धर मुनिवर उदय थयो धन धन आज नो, प्रगट्यो पुण्य अंकूरो जी। वद्या आचारिज चढ़ती कला, नामे जिनसुखसूरोजी ।।१।। सुरत सहर जिणचदसूरि जी, आप्यौ आपणो पाटो जी। महोत्सव गाजे बाजें माडिया, गीतां रां सहगाटी जी ॥२॥