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गुरु गीतादि संग्रह
२४३ ( २०० ) जिनचंदसूरि गीत साधु आचार सुविचार सखरी सुमति,
छतीसे गुणे करि जागीयौ वडी छति । साधियौ सूर मत्र ग्रही देवा सकति,
साधुपति साधुपति साधुपति साधुपति ।।१।। धींग धोरी वहै रतन रे पाट धुर,
पाउ धारे तिकै गिणा धन देसपुर । सुदृढि जिणरी हुवै जाणि परसन्न सुर,
चढ गुरु चद गुरु चद गुरु चढ गुरु ।। २ ॥ तत्त सिद्धान्त रा तेम व्याकरण तरक,
गात्र जिण रो सदा ज्ञान सुधैं गरक । उदै गच्छ खरतरै आज ऊगौ अरक,
__ भट्टारक भट्टारक भट्टारक भट्टारक ॥३॥ सूरि जिणचद श्रीपूज शोभा सधर, - बडा जिनदत्त जिणकुशल जसु दिये धर । श्री धर्मसी कहै सुजस सगले सखर,
जतीसर जतीसर जतीसर ॥ ४ ॥
न० ११ थिया केइ दिवस मन कोड़ करता यकां,
. पुण्य करि आज अभिलाप पूगी। पूज जिणचंद रा चरण युग पेखता, ।
आज सूरज सही भलौ ऊगौ ॥१॥