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________________ गुरु गीतादि संग्रह २४१ - (८) गहुली धन धन दिन आज नो लेखै, वलि हरख्या सघ विशेपैं। अंग उलट धरिय अशेषै ॥ १॥ पाटोधर पाटीय पधारो, अम्हची विनती अवधारौ । आ०।। चौपड़ा गणधर कुलचन्द, सहसकरण सुपीयारदे नंद । खरतर गच्छ अधिक आणद ॥ २॥ पाटो०॥ सदगुरु जिनरतनसूरिद, पाट थप्यौ अभिनव इद । चढती कला श्री जिणचद ।। ३ ॥ पाटो० ॥ हियडौ नयणा अति हर्षे, दुख जाय परा सहु दरसै । तुम्ह देखण नै सहु तरसै ।। ४ ।। पाटो० ।। सुणता उपदेश तुम्हारौ, अति हरख्यौ चित्त अम्हारौ । तुम्ह दरसण मोहनगारौ ।। ५ ।। पाटो० ॥ पूज वदन नी मन रलीया, सहु कोइ श्रावक मिलीया । दरसण दीठा दुख टलीया ॥ ६ ॥ पाटौ०॥ पूज मूरति मोहन वेल, वलि वाणि सुधारस रेल ।। पूज चाल गजगति गेल ॥ ७॥ पाटो० ॥ मिल मिल सब सूहव आवें, गीत मगल गहुंली गावै । वलि तंदुल मोती वधावै ॥८॥ पाटो०॥ पूज प्रतपो अधिक पुन्याइ, नित विजयहरष सुखदाइ। धर्मसी कहै शोभ सवाई ॥६॥ पाटो० ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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