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गुरुदेव स्तवनादि न नौं कोइ मुखें न लगावै,
परहौं नासि गयौ परदेस ॥३॥ धरि हिव अरज रतन पाटोधर,
साच कहै धर्मसीह सही। माग्यौ देसि आफरती मुनें,
___ना कारौ तुझ पासि नहीं ॥४॥
न० ( ४ ) चद जिम सूरि जिणचंद्र चढती कला,
सोम आकार सुखकार सोहै । अधिक आणंद उद्योतकारी इला,
महीयले मानवा मन्न मोहै ॥शा. आय नर राय जसु पाय लागै अडिग,
देखता दलिद्र दुख जाय दूरै । प्रगट जसु पुहवी परताप जागै प्रबल,
पवर गच्छराज सुखसाज पूरै ॥२॥ धरत धर्मवाट मुनि थाट सोभा धरा,
रतन रे पाट गहगाट राजें। जुग्गपरधान जंगम्म तीरथ जगै,
दौलति दिल्ल चढते वाजै ॥३॥ सकल गुण धार सिरदार सोभा सधर,
- सवल सौभाग संसार सारै। . धरमवर्द्धन धरै नाम धन धन रा,
__ - अभिनवौ कल्पतरु एण आरें ॥४॥