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गुरुदेव स्तवनादि
२२७ जे एहवा मुनिवर जप, तसु दुख खपै रे, तूटै सगला कर्म । लीला अधिक लहै सदा,
सुख संपदा रे, भाजे भव नौ भर्म । गौ०६ ॥ आठ सिद्धि हुइ आगणे, घरि धन घणे रे, विजयहरष जशवास । धरमसीह मुनिवर इम कहै, .
- ते सुख लहै रे, एह भणे जे उल्हास ।।गौ०७ ॥
श्रीी जबूस्वामी स्तवन
छोडो ना जी २ कचन नै कामिनी छोडौ ना जी।
सुणि जंबु स्वामी छोडो ना जी । आणि हाँ। सुधरम स्वामी तणि सुणि वाणी, इमदिक्षा मन आणी। तरुणी परणी तुरत तजौ ते, तोड़ो मति अति ताणी ॥छो० १ ॥ दायज मे सोनइया दीधी, नवला कोड़ि निनाणु। . परिहरि नै पाछै पछतास्यौ, तुम सु स्यु अति ताणु छो०२१ प्रीतम कहै सुण देवानुप्रिये सुख थोड़ा दुख बहुला । मधु बिन्दु दृष्टाते मानी, सग तजु छ सगला ॥ छो० ३॥ सुन्दर आठे श्वसुरा सासु, मातु पिता हित माथै। प्रभवो पचसया प्रतिबोध्यो, संयम ले सहु साथै ॥ छो०॥४॥ सुधरम शीश हुवा ए सहु, सुधरम शील आचारी। सुत्र प्ररुप्या शिव पद पहुंच्या, आज जिके उपकारी ॥छो० ॥