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मेतार्थ मुनि स्वाध्याय राजग्रही में गोचरी, विहरतौ शुद्ध आहार । सोनार नै घर संचर्यो, सुमति गुप्तिइ रे साचवतौ सार ।१॥ सुज्ञानी साधु धन मेतारिज धीर ।। सजि समता रे तजि ममता सरीर सुधन०२। सोना तणा जव तिण घड़ी, तिण घड़ी, कीध तैयार । सोनार तिण साधुन वहिरावा, गयो गेह मझार सु०३। पूठा थकी कुच पखियइ तिहा, चुग्या सहु जव तेण । सोनार आइ संभालता, कह्यौ माहरा रे जव लीधा केण ।सु०४। नर कोइ बीजो इहा नहीं, सहु लिया जव इण साध । तिण रीस भरिय तेहनौ, सीस वीटयौ रे लेइ नीले वाध (सु०॥ जाणियौ मन मे तिहा यती, जौ कहुं गिलिया कं च । तौ एह हणिस्य तेह नै, साधु बोल्यो रे नहीं इणसंच ।सु०६। अति घणी वेदन ऊछली, सूकतै वाधइ सीस । पीड थी हग छिटकी पड्या, दया पाली रे तोइ बिस्वा वीस ७१ भली अनित्य अशरणभावना, धरि चित्त चढ़ते ध्यान । कर्म चूरि अतगड़ केवलि, थइ पहुंतौ रे मुनि शिवथान सु०८ अणगार एहवा उपशमी, प्रणमियँ तेहना पाय । सुख विजयहरप हुवै सदा, इम भाखइ रे धर्मसी उवमाय ।सुई