________________
स्तुति-सवैया
२२१
जाकौ परता पूर देखे दुख जाइ दूर,
__ हाजरा हजूर जगि जानें प्रभु पास जू । मूरति विराजै नित चतुर के मोहे चित्त,
पेखै वधै नैननि की अधिक पियास जू ।। कीरति सुनी है कान, दीनौ कहा लु कै दान,
धरिके तुम्हारौ ध्यान आव लख पास जू । कहत है धर्मसीह गहत ही ताकौ नाम,
लहत अनंत सुख तूटै दुख पास जू ॥
चौवीस जिन गणधरादि सख्या छप्पय
वंदो जिन चौवीस चवदसे बावन गणधर । साधु अठ्ठावीस लाख सहस अडतीस सुखंकर ॥ साध्वी लाख चम्माल सहस छयालिस चउसय । श्रावक पचपन लाख सहस अडताल समुच्चय ॥ श्राविका कोडि पच लाख सहु,
अधिक अठावीस सहस अख । परिवार इतो संघ ने प्रगट,
श्रीधर्मसी कहै करहु सुख ।