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( १७ )
४ दृष्टान्त
मोटा रे पिण कष्ट में, जतन नेह सहु जाय । रातै रमणी रांन मे, नाखि गयौ नलराय ॥२२॥ राज लैण माहे रहै, वडा तणी मति वक्र । भरते मारण भ्रात नै, चपल चलायौ चक्र ॥२३॥ दान अदान दुहूं दिसी, अधिक भाव री ओर। नवल सेठ नै फल निबल, जीरण नै फल जोर ॥२४॥
( दृष्टान्त छतीसी)
५. काया
काया काचे कुंभ समान कहै ककौ । धाख घेखी काल - सही देसी धकौ ।।
करवत वहता काठ ज्यु आउखो कट। परिहा, न धरै तोइ धर्मसीख जीव नट ज्यु नटै ॥११॥
(परिहा बत्तीसी)
६. सीख राजा मित्र म जाणे रंग,- सुमाणस रो करिजे संग। काया रखत तपस्या कीजै, दान वल धन सारु दीजै ॥१०॥ जोरावर सुमत रमे जुऔ, करिजे मत घर माहे कुऔ। वैदा सुमत करजे वैर, गालि. बोले तो ही न कहे गैर ॥१२॥
( सवासौ सीव)