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( १६ ) दान करौ बहु ध्यान धरौ,
तप जप्प की खप्प करो दिन ही की। बात को सार यहै धर्मसी इक, भाव विना नहीं सिद्धि कहीं की ।।४।।
(धर्म बावनी)
२. मधुर वचन बहु आदर सू बोलिय, वारु मीठा वैण । धन विण लागा धर्मसी, सगला ही है सैण ।। सगला ही है सैण, वैण अमृत वदीजै । आदर दीजं अधिक, कदे मनि गर्व न कीज ।। इणा बात आपणा, सैंण हुइ सोभ वर्दै सहु । मान निसर्च मीत, बोल मीठो गुण छै बहु ॥४४||
(कुण्डलिया वावनी)
३. मोर और पंख कहै पाखा सुणि केकि, कत तुझ लागि केहै । करि कु मया तु कांड, फूस ज्यु अम्ह पा फेडे ।। सुन्दर माहरे संग, कहै सहु तोने कलाधर ।
नहीं तर खुथड़ो निरखी, नेट निन्दा करसी नर ।। अम्ह घणी ठाम वीजी अवर, धरमी आदर करि धरै। माहरे सुगुण सोभा मुगट, श्रीपति पिण करसी सिरै ॥२२॥
(छप्पय वावनी)