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सवैया . २१६ भाडेसाह करायौ भलौ, तीरथ ए सहु मैं सिर तिलौ। मोटी ओपम राजे मेर, वंदो जिनवर बीकानेर ॥५॥ सुमतिनाथ जिण पंचम सार, चौमुख २ जिन च्यार च्यार। ऊपरि ऊपरि सुजस उचेर, वंदो जिनवर बीकानेर ॥ ६॥ नमि आगे तिहा थी नमिनाथ, इकवीसम आप सिव आथि । हालौ जीव जयणाए हेर, वन्दो जिनवर बीकानेर ॥ ७॥ वलता देवगृह सुविधान, मन सुध वदु श्री वर्द्धमान । फिरतां शुद्ध प्रदिक्षणा फेर, वंदो जिनवर बीकानेर ॥८॥ आदिसर प्रासाद अनूप, राजै मूरति सुन्दर रूप । चिहुं दिसि बिंब घणा चौपखेर, वंदो जिनवर बीकानेर ।। १ ।। अजितनाथ बीजो अरिहंत, भय भंजन भेट्यौ भगवंत । खाट्यौ समकित पाप खखेर, वदो जिनवर बीकानेर ।॥ १० ॥ परसिद्ध ए आठे प्रासाद, प्रणम्या जिनवर तजी प्रमाद । श्री धर्मसी कहैं साझ सवेर, वंदो जिनवर बीकानेर ॥ ११ ॥
तीर्थ कर स्तुति-सवैया
नमो नितमेव सजौ शुभ सेव, जयो जिनदेव सदा सरसै। दुति देह दसैं, अति ही उलस, दुख दूर नसै जिनकै दरसै ॥ असुरेस सुरेश अशेष नरेश, सबै तिण वंदन कुतरसे । धर्मसीह कहै सुख सोऊ लहै, जोऊ आदि जिणंद नमै हरसै ।।।