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________________ श्री पार्श्व स्तवन २०६ - श्री पान स्तवन सुणि अरदासा सुगण निवासा अमची पूरउ आसा राजि ।। देखि उदासा अपणा दासा, दीजै कछुक दिलासा राजि ॥ १।। चाढी चटकी भव मइ भटकी, नाच्यो हुं विधि नटकी राजि । हिव मन हटकी आपसौं अटकी, लागौ तुम्ह पाय लटकी ॥२॥ तइ अम्ह टाली मुगति सभाली, प्रीति अम्है हिज पाली राजि । एक हथाली बागी ताली, बात अचभा वाली राज ॥३॥ तु उपगारी पास तुहारी, सेवा सहु में सारी राज । तत्त विचारी शुध मन धारी, श्री धर्मसी सुखकारी राज ॥४॥ __ श्री पाश्र्न स्तवन राग-सारग वृदावनी नित नमियै पारसनाथ जी। मनमोहन ए रतन चिंतामणि, हिव आयो छै हाथ जी ॥१॥ सेवो स्वामि सदा मन सूधे, आपै वछित आथ जी। पुण्य उदै करि ए प्रभु पायौ, सिवपुर मारग साथ जी ॥२॥ महियल माहि अधिक जसु महिमा, सेवै सघ सनाथ जी। ध्यावौ एक मना कहै धर्मसी, एह' अनाथा नाथ जी ॥३॥ पाश्र्वनाथ वधावा गीत .. पहिलै वधावै जिणवर देव जुहोस्या, सफलौ हो सफलौ जन्म हुऔ सही। वीजे वधावे समकित रतन सुलाधी, दिल में हो संकादिक दूषण नहीं जी ।।१।।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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