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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
श्री सवेश्वर पान स्तवन ढाल-विलसै रिद्धि समृद्धि मिली
महिमा मोटी त्रिभुवन माहे, आवै यात्रा जग उमाहै । कल्पतरू फलियो हितकामी, सुखदायक सखेश्वर स्वामी ।१॥ धुरि बदइ पूजड ध्यान धरै, कर जोड़ी सेवा जेह करें। गुण गावै तेह मुगति गामी, सुखदायक संखेश्वर स्वामी ॥२॥ विपमा दुख वैरी जाय विलैं, महिला जिम कमला आइ मिलें । जप जाप जपो अन्तरयामी, सुखदायक सखेश्वर स्वामी ।३। जदुसेन जरा मूर्छित जाणी, सज कीध पखाल तौँ पाणी। ठावा जस एहवा ठाम ठामी, सुखदायक संखेश्वर स्वामी ||४|| काम कुम्भ चिंतामणि कल्पलता, छाजै ए उपमा काज छता। पिण इण सम काइन आसामी, सुखदायक संखेश्वर स्वामी ॥शा सतरैसे सतट्टि पोस सुदी, सातम श्री पाटण संघ मुदी। परतिख प्रभु नी यात्रा पामी, सुखदायक संखेश्वर स्वामी ॥६॥ धन जिनसुखसूरि धर्म शील रस्तइ, सुविवेक कियो वेलजीवस्तइ । जिनराज जुहार्या जस नामी, सुखदायक सखेश्वर स्वामी ॥७॥