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जैसलमेर पार्श्व स्तवन
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आपे आप हाथो हाथ ईहना अथग्ग आथ, नामथी करै निहाल अनाथां रो नाथ ॥२॥ एही एक देव पास, पूरवें उलास आस, तेज को प्रकास वास जास त्रिभुवन्न । पास साम पास साम नामचे प्रणाम पामें, माम काम ठाम ठाम माणं सुक्ख मन्न ॥ ३ ।।
ओपियो इखाग वश आससेण अग जात, वामा विखियात मात जात आवै वृन्द । एकीह अवीह सीह लोपें कुण लीह एही जाप धरै धर्मसीह गौडीची जिणद ॥ ४ ॥
जैसलमेर पार्श्व स्तवन ढाल-दादेरे दरबार चापो मोह्य रह्यो
उगी धन दिन आज सफलौ जन्म सही री । सफल फल्या सहु काज, जिनवर यात्रा लही री ॥१॥ जगगुरू पास निणद, भेट्यौ भाव धरी री।। इण ससार समद, तारण तरण तरी री ॥२॥ जिनवरजी ने जाप, परहा पाप पुलै री।। उगै सूरिज आप, किम अधार कलै री॥३॥ भयभजण भगवंत, जेसलमेर जयौरी। उपगारी अरिहत, दरिसण दुक्ख गयौरी ॥४॥