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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली नयणे पाच अनुत्तर निरखेवा हवं मन माहे जो हंस । स०। तौ पहिज तीरथ भटो तुम्है रचना तिण हिज रूस ॥ स०।३। धन जेसलगढ जिहा धर्मात्मा सघनायक थिरूसाह । स०। जिण प्रासाद कराया जिनतणा, आणी अधिक उमाह ॥ ४ ॥ सुन्दर महसफणे करि सामली, दीप मूरति दोइ । स० । मेघ घटा ने देखी मोर ज्यु . हरखित मुझ मन होइ ।स०१५॥ पास सदा चितामणि नी पर, आप बंछित आस ॥ स० ॥ नाम गुण करी माची नीपनी, प्रगट चिंतामणी पास स० । है। सतरैसे त्रीसें मिगसर सुदे, बारस बहु संघ साथ । वाचक विजयहरप हरपे करी, प्रणम्या पारसनाथ । स०। ७ ॥
लोद्रवा पार्श्व स्तवन राग-सोरठ
पूजौ पास जी प्रभु परता पूरै, चितनी चिंता चूरै । सहसफणा शोभंत सनूरैं, दरसण थी दुख दूरै ॥१॥ सुणता कान कीरति सारी, परसिद्ध लोद्रपुरा री। जिन मूरति हिव नयण जुहारी, साचा गुण सुखकारी ॥२॥ नीलकमल सम मूरति निरखी, सहसफणा वे सरिखी। पास चिंतामणि साचा परखी, हिव सेवो मन हरखी ॥३॥ सुन्दर तिलको तोरण सोहे, मंडप पिण मन मोहे। ऊंची धज आकाश आरोहै, कही मुझ समवड को है ॥४॥