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________________ - लोद्रवा पार्श्व स्तवन १६५ लोद्रवा पाश्र्व जिन स्तवन । महिमा मोटी महियलै, प्रगट चिंतामणी पासो रे । सफलौ नास करें सदा, आफै वछित आसौ रे ॥ १॥ अधिक सफल दिन आज न. भेट्यो श्री भगवतो रे। कहीजें जीभ केतला, एहना सुजम अनतो रे ॥२॥ मोटो जेसलमेर ए, मेर ज्यू- महीयलि मोहे रे। तीरथ लौद्रपुरो तिहा, शुभ नदनवन सोहे रे ॥३॥ दिन दिन दीपं देहरा जिहा श्री पास जिणदो रे । साथ ले सुधरम सभा, आयौ जाणे इन्दो रे ॥ ४ ॥ सुन्दर त्रिगढा सम विच, वृक्ष अशोक बिराजै रे । सागी जाणे सरग नौ, कलपवृक्ष हित काजे रे ॥५॥ सहसफणा विहु साम नौ, सौहे रूप सवायो रे। थिर जस ते कांधो थिरू, वित दस क्षेत्रे वायो रे ॥६॥ सतरसे गुणत्रीस (१७२६) म, मिगसर मास मझारो रे। यात्रा करी जिनवर तनी, धर्म शील चित्त धारो रे ॥७॥ लोद्रवा पाश्र्व स्तवन । लुलि लुलि वदो हो तीरथ लोवो, अधिकी आसति आणि । सजन जन जिनवर नी पामीजें जोतरा, पुण्य तणे परमाणि ।। शकादिक दूपण छोडो सहु, समफित धारो रे सार । स०। अरची भाव धरी अरिहत नै, पामौ जिम भवपार ॥ स० ॥२॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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