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( १४ ) १० सुगुण सनेही मेरे लाला। ११. दीवाली दिन आबीयउ ।
मुनि धर्मबर्द्धन का जीवन त्यागमय था एव जनता में लद्धर्म का प्रचार करना ही उनका मुख्य कार्य था। अतः उनकी रचनाओं में औपदेशिक एवं धार्मिक सामग्री का पाया जाना सर्वथा म्वाभाविक है। वे जैन शासन में थे। उनके हृदय में जैन तीर्थङ्करों एव आचार्यों के प्रति अगाध भक्ति थी, जो उनकी अधिकाश रचनाओ का प्रधान विषय है। इन रचनाओ से मुनिवर के हृदय की भक्ति टपकी है। यहां कुछ उदाहरण दिए जाते है :
१. संघ (छप्पय ) वदो जिन चौबीम चबदसे बावन गणधर । माधु अट्टावीस लाख सहस अड़तीस मुखंकर ।। साध्वी लाग्य चम्माल सहस छयालिस चउसय ।
श्रावक पचपन लाख सहस अडताल समुच्चय ।। श्राविका कोडि पच लाख सहु, अधिक अठावीस सहस अख । ‘परिवार इतो मंघ ने प्रगट, श्री धर्ममी कहै करहु सुख ।।
२. श्री जिनदत्तमरि ( सवैया ) बावन वीर किए अपने वश, चौसटि योगिनी पाय लगाई। डाइण साइणि, व्यंतर खेचर, भूत परेत पिसाच पुलाई। वीज तटक भटक कट्टक, अटक रहै पै खटक न काई। कहे धर्मसीह लधे कुण लीह, टीय जिनदत्त की एक दुहाई।