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( १३ ) जैन विद्वानो द्वारा लोक साहित्य का बड़ा उपकार हुआ है। जहा उन्होंने अपनी रचनाओ के लिए लोककथाओ का आधार लेकर बड़ी ही रोचक एवं शिक्षाप्रद सामग्री प्रस्तुत की है, वहा उन्होंने लोकगीतो के क्षेत्र मे भी विशेष कार्य किया है। उन्होंने लोकगीतो की धुनो के आधार पर बहुत अधिक गीतो की रचना की है और साथ ही उनकी आधारभूत धुनों के गीतो की आद्य पंक्तिया भी अपनी रचनाओ के साथ लिख दी है। इस प्रकार हजारो प्राचीन लोकगीतों की आद्य पक्तिया इन धर्म प्रचारक कवियो की कृपा से सुरक्षित हो गई'। मुनि धर्मवर्द्धन विरचित अनेक गीत भी इसी रूप में है। उनके कुछ गीतो की धुनें इस प्रकार
१. मुरली बजावै जी आवो प्यारो कान्ह । २ आज निहेंजो दीस नाहलो। ३ केसरियो हाली हल खड़े हो । ४. धण रा ढोला। ५. ढाल, सुबरदेरा गीत री। - ६ ढाल, नणदल री। ७ उड रे आबा कोइल मोरी। ८. हेम घड्यो रतने जड्यो खंपो ।
६ कपूर हुवै अति ऊजलो रे । २ 'जैन गुर्जर कवियो' भा० ३ ख ० २ मे रोसी प्राचीन 'देशियो' की
अति विस्तृत सूची दी गई है, जो द्रष्टव्य है ।