________________
चौवीस जिन सवैया
१६६
कासी देसवासी पुरी दुरी नाहि वानारसी,
आससेन पिता, माता वामा जसवास वास। जैन धर्मसीह जानें, पाप दुख पील भागें,
जाके आगें देवनिके, देव भए दास दास । पूरै सब ही की आस, पदमा निवास पास,
पास की दुहाई भाई, जो न बोलें पास पास ॥ २३ ॥
गुण को गंभीर खीर, सोनेसो सरीर वीर,
___ असो देव महावीर, धीरनि में धीर धीर । दान को उदो उदीर दुनी कीनी दवा गीर,
___ दीनौ सवा लाखहु कौ, देवदुष चीर चीर । मारे मोह द्रोह मीर ग्यानी गुने गंगनीर,
तारे तकसीर वारे, पायौ भवतीर तीर । साचौ जैनधर्म सीर वीर मे वीराधिवीर,
वीर की दुहाई भाई, जो न बोलै वीर वीर ॥ २४ ॥ साधु भला दस च्यार हजार, हजार छतीस सु साधवी वदी। गुणसट्ठि सहस्स सिरै लख श्रावक, श्रावकणी दुगुणी दुति चढौ चौवीसमे जिनराज को राज, विराजत आज सबै सुखकंदी। श्रीध्रमसी कहै वीरजिणिंदकी, शासनधर्म सदा चिरनदो।।२।। इति चौवीस तीर्थकरा रा सर्वया संपूर्ण ।। ५० सामजी लिखत बीकानेर मध्ये सवन् १७८१ वर्ष मिती आसाढ सुदि ह दिने ।