________________
धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली मात के कूखि लह्यो अवतार, भयौ व्रत्त को अभिलाख अमदौ' तात कियौ व्रत्त उच्छव देस में, सेस प्रजाहु यही परिछंदौ । मोटी भई तप की महिमा मुनि-सुनत नाम कीयो निज नदी। तीनहु लोक को नाथ तिथंकर, बीसमौ बीम विसे करि
वंदी ॥२०॥ आलस' मोह-कथा' अवहीलन, गर्व 'प्रमाद निद्रा
भय भ्रांमी। तद्धनता पुनि सोग अग्यांन'', विषय ' कुतूहुल'' रामनि
कांमी। त्याग छ सातक घातक काठिए, धारि भली ध्रमसीखसु धामी। अनाथको नाथ नमो नमिनाथ, सनाथ किए सवही सिर
नामी ॥२॥ राजीमती सती सेती नवा भवाहु को प्रेम
तोत्यो पुनि जोस्यो भाव प्रेम न अप्रेम प्रेम । अँसौ महा ब्रह्मज्ञांनी, शुद्ध धर्मशील ध्यानी,
यासौ निकलंक कोहैं. सोहै सम हेम हम । धन्य सिवादेवी मात, जार्के सोलै अंग जात,
महा सत्य दृढ शुभ रिष्ट पांचौ नेमि नेमि । छठ्ठी रहनेमि नामी, तारे सब नेमि स्वामी,
नेमिकी दुहाई भाई, जो न बोले नेमिनेमि ॥ २२ ॥ देवलोक दसमे ते आप अवतार आयो,
__ पायो धुरि दसमी जन्म पोस मास मास । १ डोहलो २ अधिको ३ परिवार ।