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चौवीस जिन सवैया
केईतो 'कैलास की रहास करि बैंठि रहे,
___ काहू को तो वास है बबूल 'बोधितरू को । कोऊ जल-राशि सेप नाग पास सोवत है,
काहू को रहास कामधेनु पूछ खुरको । कौऊ तो अकास अवकास माहे भटकत,
कोऊ कहै मेरौ मेर मैं हूं धणी धुरको। केवल प्रकासी अविनासी हैं अनैंसी ठोर,
तहाँ कीनौ वास वासपूज सिधपुरको ।।१२।। विमल विसेप ग्यान विमल कला निधान,
विमल विचार सार मुद्ध साधु मगमे । केते करे उपगार तारे भव्य नर नारि,
बूडते ससार वार अबुधि अथग मे । एक तेरी करी सेव सब ही मनाए देव,
सबही के पग पैंठे एक गज पग मे । सुद्ध धर्म सील साथ, असो देव कौन आथ,
जैसी है विमलनाथ तेरो जस जग में ।।१३।। आदि के "अनंतानत, सिद्ध सवे जीव सत,
दुसरें निगोढ जीव तीजै 'वनरास है।
१ महादेव २ कृष्ण वासौ बौधतरु, पीपल ३ समुद्र ।
४ सिद्धा निगोय जीवा, वशस्सई काल पुगला चैव । सव्वमलोगनह पुण, तिवगाऊ केवल ग्गामि ॥ २ ॥ ५ वनस्पती