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१५२ धर्मवद्धन ग्रन्थावली सब तमस मिट्यौ प्रगट्यो सराह,
वयो शुभ ज्ञान प्रकाश वाह ।।२।। चित कोक विलोकव करत चाह,
सव सुर नर जिनकी करत सराह ॥३॥ फरस्यौ शुभ यश परिमल प्रवाह,
लुलि नमता समकित रतन लाह ॥४॥ इनके गुण गण महिमा अथाह,
गावइ धर्मशी गुण गीत गाह ॥५॥ ५ श्री सुमति जिन स्तवन
राग--वैलाउल मेरे माई सुमति की सेवा साची। जिनके नाम प्रसाद-जयी है, राधा आप सुराची ॥१॥ वादी कुबुद्धि किए बहु कामण, नटवी ज्युबहु नाची। दूर निकार दइ बहु दूती, तृष्णा मारी तमाची ॥२॥ सुनानी के परप्यारी सु, करनी प्रीति सुकाची । सुधर्म शीलवती सखदाइ, युवती याहीज राची ।।मेरे॥३॥
६ श्रीपद्मप्रभु जिन स्तवन
राग-तोडो हृदय पद्मप्रभु राचि रह्यो री । मंगल सकल हर्प भयौ मेरे, लाभ अनोपम रतन लह्योरी ॥१॥