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वर्तमान जिन चौवीसी
१ आदि जिन स्तवन
राग भैरव आज सुदिन मेरी आस फली री || आज०॥ आदि जिणंद दिणद सो देख्यो,
हरख्यो हदय ज्यु कमल कली री । आज सुमा। चरण युगल जिनके चितामणि,
मूरति सोइ सुरवेनु मिली री। नाभि नरिंद को नंदन नमता,
दूरित दशा सव दूर दली री ।। २ ॥ प्रभु गुण गान पान अमृत को,
भगति सु साकर माहि मिली री । श्री जिन सेवा साइ धर्म सीमा,
ऋद्धि पाइ साइ रंग रली री ॥३॥
२ अजितनाथ स्तवन
__राग-ौरव प्रभु तू अजित किन्हीं नहिं जीतो,
सोभत रवि ज्यु तेज सदीतो। अधिको को नहीं तोहि अगीतो,
तेरी महिमा जगत जगीतो ॥ प्रभु० ॥ १॥