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प्रस्ताविक विविध संग्रह
सौयो बात करामात शास्त्र घोष कंठ शोष पंडिताई कर पोष,
पूछयौ होत राग दोष रोष न समात है। एक ही बचन कला दूझै कामधेनु तुला,
याही कला आगॅऔर सवे कला मात है। माने सुलतान खान रीमै सब राउ रान,
पावै दान मान थान हित की हिमात है। सव कु सुणै सुहात मुख की है मुलाखात,
धर्मसी कहै रे भ्रात वात करामात है ॥१॥ चोरनि की करामात, चाहत अधारी रात,
साहिनि की करामात घर मैं विसात है। बालनि की करामात, पास अपणी है मात,
पछनि की करामात जागत प्रभात है। जोगिनि की जाति मे जमात करामात कहीं,
गणिका की करामात सुन्दर सुगात है। सवहु कुसुण्यै सुहात मुख की है मुलाखात, __ सव ही कु धर्मसीह बात करामात है ॥२॥
दोहा ओरंग पतिसाहि ग्रही, दहवटि करि दाराह । रज पियारा रज्जिया, भाइ दुपियाराह ।। १ ।। स्वारथ मिट्ठा सब ही कु, विण स्वारथ खाराह । रज्ज पियारा रज्जिया, भाइ दुपियाराह ॥ २ ॥