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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
बूढी पिण वाली भोली रे, तनु केसर चंदन खोली रे। कहै धर्मसी एह हियाली रे, मति करज्यो वात विचाली रे।
कु० ॥४॥ (थापना)
ढाल-गाठलदे सेतु जे हाली कही पंडित एहीयाली, मत करिज्यो वात विचाली रे कहो निरखी सुन्दर नारी, धरमी आदर करि धारी रे कहो।। नव नव विधि कूर्दै नाचे, पिण सहु वखाणे साचै रे ।कहो०३। करें घुघट पिण तिण च्यारे,
__ सकुचें पिण नहीं किणहीक वारै रे ।'कहो।।४|| फिरती रहै सहु अंग माथै, हिरद ने वैसे हाथै रे ।कहो० ॥॥ वोलता आड़ी आवै, पिण तेहनो भेद न पावै रे कहो० ॥६॥ निदै ते भारी करमी, धर्मसी कहै धरस्यै धरमी रे ।कहोगा।
(मुहपत्ता)
ढाल-चतुर बिहारी रे प्रातम राहनी । अरथ कहो तुम वहिलो एहनौ, सखर हीयाली रे सार । चतुर नर एक पुरष जग माहे परगड़ो, सहु जाण संसार चतुला? पग विहुणो पिण परदेसे भमै, आवै तुरत जाय। वैठो रहै अपणे घरिवापड़ो, तो पिण चपल कहाय । च०अ०२ कोइक तो तेहन राजा कहै, कोई तो कहै रंक ।च०