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प्रस्ताविक विविध संग्रह
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दुढिया रो कवित-छप्पय आया नै उपदेस, प्रथम प्रतिमा मत पूजौ। . वादौ मत अम्ह विना, दरसणी यति को दूजो । दीजै नहीं बलि दान, भवे बीजे भोगवणा । आगम केइ उथपे, लोह सु जड़ीया लवणा । सीख द्यौ लाख न हुवै समा, खोटी जड रा खुढीया । पारकी निंद करताप्रगट, धरमी किहा थी ढुंढिया ॥ १ ॥
अधिक आदि अनादि री मातवटि उथप,
देवपूजा तणा सुस दीधा । देखि अन्याय आचार अंदेस मैं,
__ काल नैं चाल जगदीस कीधा ॥ १ ॥ प्यास मरता पसू पखिया पथिया,
पाप है पावज्यो मता पाणी । भरमिया भल भला लोक एहै भरम,
धरम कियौ तिणें धूल धाणी ॥ २ ॥ गिणइ नहीं शास्त्र वलि मूलगा देवगुरू,
लाज विण लोक इण कुमति लागे । ऊबली रीति ऊधा तिके ऊठीया,
ऊठिसी ई ए उतपात आगैं ॥ ३ ॥ मेलि परवान मान महाराज कीधा मन्है,
__ लोपीयो हुकम करतूत लहसी। हुइ सहुको कहै. हाकमैं हाकमी,
रैत वर वैत दुष्ट दूर रहसी ॥ ४ ॥