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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पशु पथी पंखिया, आपणी ठामै आवै । आरंभ किया अलग, सको थिर चित्त सुख पावं ।। आकास चंद तारा उदें, दिन चिता अलगी दुरी । सुखकरण संघ धर्मसी सदा, सकति रूप संध्या सुरी ॥२॥
सर्व सघ आशीर्वाद परव अवसर सदा दरव खरचे प्रघल,
गरव न करें करइ सरव उपगार । धरवि जलधार जिम दान वरसै धरा,
जगतपति संघ रौ करौ जयकार ॥१॥ सूध मन सेव गुरू देव री साचवें,
___ सखर समझ अरथ सूत्र सिद्ध त । दिये बहु दान मन शुद्ध पालइ दया,
भलो नित संघ रौ करौ भगवंत ॥ २ ॥ राय - साधार वदिछोडि मोटा विरुद,
साह पतिसाह सम मौज महिराण । संघ सुप्रसन हुआ भवे निध संपजै,
करौ प्रभु संघ रौ सदा कलियाण ॥ ३ ॥ वरण अढ़ार ने जिकै दिये वरा,
खरा द्रव्य खटिन करें धर्म काज । कहै धर्मसीह सुकवि लोक सहि को कहैं,
महाजन तणो उदो करें महाराज ॥ ४ ॥