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औपदेशिक पद साभलिय शिव शासनै हो, सहु मान्या नहीं सु स । वनमाला लखमण भणी,
इण सुसै हो दीध विदा भली हूस । पि०।७।। सूरज आथमिय ही हो, अभख समौ अनपान । व्रत पाले मन वालि नै सुख पामै मोक्ष प्रधान । पि०।८। हितकारी सहु मे हुवे हो, एह भलौ उपदेस । श्रीधर्मसी कहै साभलौ,
ग्रहि लेज्यो हो लेज्यो ड्युगुरू सेस पि०।६।।
औपदेशिक पद
( १ )
राग--ौरवी ज्ञान गुण चाहै तो सेवा कर गुर की ,
घृत नाली जैसी जाकी गाली धुरकी। • कोउ पढौ हिन्दुगी को कोऊपढौ तुरकी , इक गुरू संगकुलफ खुलै उर की। १ । ज्ञा० । जानतौ न अच्छर सो जान वानी सुर की , प्रगट वचनसिद्धि सिद्धि शिवपुर की। २ । ना०